फूलसिंह राजवंशी
पौराणिक कालत कोशी नदी
पूर्व कामरुप राज्य अवस्थित छिले
। इ.सं. १२५०
सालत कामरुपेर पश्चिमी भागलाक
कामना वा कामरुप कामना
कहकि । कोचबंशीय राजालार शासन
कालत कामरुप कामता राज्यरक कोच
राज्य भि कहकि ।
जयनाथ मुन्सीर ‘राजोपाख्यान’ आर
कालिका पुराण, योगिनीतन्त्र नामक
ग्रन्थलार अनुसार चन्द्रवंशी क्षेत्रीय राजा सहसार्जुनेर सन्तानला कोच
नाम पाइस्ले । किरात राजा
कोचुर सन्तान आर उहाँर अनुयायीला कोच
हबार काथा किरात इतिहासत भि
पाछि । सर एडवार्ड
गेटर आफ्नो पुस्तक ‘ए
हिस्टरी अफ असम’त
मिकिर लालुङ कछारी आदिलाक कोच
कहिछे ।
उपरत उल्लेखित क्षेत्रीय कोच
आर किरात कोचलार पाछु
एक आपसत मिलिएने एकाकार हबार
काथा बुझाजाछे ।
इ.सं. १५१५ सालत
अर्थात कोचबंशीय उपाधि लिस्ले ।
पौण्ड्र क्षेत्रीला आर अधिकांश राजवंशीलार बारे
साहित्यिक स्रोतलात पाछि । अतः
राजवंशी शब्द समूहबाचक शब्द
हए ।
राजवंशी राजा विश्वसिंह आर
नरनारायणेर समयत राजवंशी कामरुपी वा
कामतापुरी भाषात लेखाल अनेक
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थला पाछि । राजवंशी
महाराज नरनारायणेर युगरक राजवंशी भाषा
साहित्येर स्वर्णयुग कहबा लागे ।
मतुन, असमिया साहित्यकाला नरनारायणेर
कालरक असमिया साहित्येर स्वर्ण युग मानिछे आर
हुति बंगाली विद्वान तथा साहित्यकारला भि
नरनारायणेर युगरक बड महत्व
दिँते यिड युगरक बंगला
साहित्येर उर्वर युग मानिछे
मतुन यिड काथाक सहजे
मान्बा निसक्म । कियाँकि राजवंशी राजा
नरनारायणेर समयत असम आर
असमिया भाषा थिएन, बंगाल
आर बंगला भाषा भि
निछिले । वर्तमान कमरुप,
पूर्व बंगालरक समतट, पश्मिम बंगालरक कर्ण
सुवर्ण एवम् दक्षिण समुद्र तटरक
तम्रलिप्त कहकि ।
बंगला भाषा साहित्येर
विकास राजाराम मोहनरायेर समय (इ.सं.
१८००) बिति मात्र देखाजाछे ।
किन्तुक राजवंशी र नरनारायणेर समय
(इ.सं. १५००) बिति
हि आस्बार देखाजाछे । अतः यिड
काथासे बुझ्बा सकिछिकि बंगला भाषा साहित्य
से राजवंशी भाषा
साहित्य तीन बछरेर जेठो
हए ।
डा. द्रोणकुमार उपाध्यायर आप्नार
पुस्तक राजवंशी परिचय, भाषा, लिपि
आर व्याकरण खण्डत बंगला, मैथिली, असमिया
आर राजवंशी यीला गटे भाषाला
खबे नजिककार नातेदार हए । भगिनी
भाषा हए कहेने कहिछे
। उक्त पुस्तक २०
डिसेम्बर १९९८ सालत राजवंशी
भाषा प्रचार केन्द्रीय समितिसे प्रकाशित हए ।
राजवंशी भाषा, साहित्य, संस्कृति उत्थान
करबार ताने वि.सं.
२०३९ साल भाद्र ११
गते झापा जिल्लार भद्रपुर नगरपालिकास्थित
देवकोटा स्मृति भवनत राजवंशी भाषा
प्रचार समिति नामेर संस्था गठन
हइस्ले ।
राजवंशी भाषा प्रचार समितिद्वारा इ.सं. १९८२ सालत
समितिर संस्थापक अध्यक्ष फूलसिंह राजवंशीर सम्पादनत राजवंशी साहित्यिक पत्रिका उदय, इ.सं.
१९८२ ले साधारण शब्दावली जुलाई
१९९१ सालत राजवंशी भाषा
प्रचार समिति (क्या प्रश्नोत्तरमाला)
अक्टोरब २, १९९७ सालत
राजवंशी संस्कृति आर इ.सं.
२००१ सालत राजवंशी बुलेटिन प्रकाशित
हइछे ।
राजवंशी भाषा प्रचार समिति
केन्द्रीय समितित परिणत हबारबाद २०
जनवरी १९९४ सालत तत्कालीन
श्री ५ को सरकारसे
विघिवत रुपत मान्यता प्राप्त करिछे
। वर्तमान परिस्थितित यिड समिति राजवंशी समाज
विकास समिति नामत परिणत
हइछे ।
राजवंशी भाषा बोल्बार लोक्ला नेपाल,
भारत, बंगलादेश आर भुटानेर उबडखाबड भूमित भि पाछि ।
संसारभरत राजवंशी भाषा बोल्बार संख्या इ.सं. १८७९
सालेर गणना अनुसार ३५,९०,३४२ हबार
काथा ग्रियारसेर लिङग्विस्टिक सरबे अफ इन्डिया,
नामक ग्रन्थ पेज १६३ भलियम
५ अंश एकत उल्लेख
छे । यिड संख्या
१३२ बर्ष आघकार हए
।
भारतेर पूर्वाेत्तर क्षेत्रर असमस्थित कोक्राझार जिल्लास्थित चन्द्रपारा उच्च माविर प्रागणत २३,
२४ आर २५ सेप्टेम्बर
२०११ सालत राजवंशी भाषा, साहित्य, संस्कृत
सम्बन्धि अन्तर्राष्ट्रिय सेमीनार हइस्ले । उड सेमिनारत
विहारसे बसन्तकुमार दास, आनन्द मोहनसिंह, असमसे
अम्बिका चौधरी, डा. द्विजेन्द्रनाथ
भगत, अरुणकुमार राय, रञ्जीत सिंह,
डा. दीपककुमार राय, नगेन्द्रनाथ राय,
दिनेशचन्द्र राय, नेपालसे फूलसिंह राजवंशी,
बरतलाल राजवंशी, हंशलाल राजवंशी, सुरेन राजवंशी भाग
लिस्ले ।
उक्त सेमीनारेर राजवंशी साहित्य सभार कोक्राझार जिल्ला आर
समितिर आयोजनात सम्पन्न हइस्ले ।
वर्तमान अवस्थात नेपालत, विहार, बंगाल असमेर
राजवंशीला राजवंशी भाषा, साहित्य आर
संस्कृतिर ताने संघर्ष करिरहछे ।
राजवंशी समाजेर भाषाविद आर साहित्यकारला राजवंशी भाषार
व्याकरण आर शब्दकोष सन्ति
महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशन करबारे साथे अनेक पुस्तक
पुस्तिका पत्र पत्रिकाला प्रकाशित करिछे
।
नेपालेर भाषा आर मोरंग
जिल्लार राजवंशी माझ बोल्बार राजवंशी भाषात
बोलचाल आर लेखक शैलीर
विविधतात एकता आन्बार ताने
धरानेर पान होटलत राजवंशी भाषा
बर्ण विन्यास गोष्ठी हइस्ले । गोष्ठीर आयोजना त्रिभुवन
विश्वविद्यालय भाषा विज्ञान केन्द्रीय विभाग
कीतिपुर आर
नेपाली राष्ट्रिय भाषाहरुको संरक्षण संस्था काठमाडौर करिस्ले । उड गोष्ठी
५ जनवरी २००४ सालत
हइस्ले ।
नेपालत वि.सं. २०६६
(इ.सं. २००९ं)
सालत नेपाल सरकार शिक्षा मन्त्रालय
पाठ्यक्रम विकास केन्द्र सानो
ठिमी भक्तपुरद्वारा राजवंशी मातृभाषार ताने कक्षा एकत
पढाई हबार ताने राजवंशी
भाषा आर किताब प्रकाशित हइछे
। यिला पाठ्य पुस्तकेर लेखन
विष्णुप्रसाद राजवंशीर करिछे आर याहाँर
सम्पादन चन्द्रकुमारी राजवंशीसे हइछे ।
भाषाशास्त्रीलार अनुसार राजवंशी भाषा भारोपेली परिवार भित्रत
परेछे ।
राजवंशी शब्द संस्कृतसे आसिछे
आर संस्कृतसे उद्भव हुवाल भाषा
हए । ‘चर्चा पद
आर गोपी चन्द्रेर गान’
महाकाव्य यिड राजवंशी भाषार
प्राचीन साहित्य कृति हए ।
तत्कालीन राजवंशी राजा नरनारायणेर आर्दशत पुरुषोत्तम
विद्या बागिसले प्रयोगरत्न शाला नामक संस्कृत
व्याकरण लिखिछे ।
नेपालत बोल्बार गटे मातृभाषा राष्ट्रभाषा हबार
काथा नेपालेर अन्तरिम
संविधान २०६३ त उल्लेख
छे । अतः राजवंशी
भाषा भि
नेपालेर राष्ट्रभाषा हए । किन्तु
राष्ट्रभाषा (मातृभाषा)लाक उड संविधानत
सुचीकृत करबा निसकिछे ।
अतः २०६३ सालेर अन्तरिम संविधान
भि त्रुटीपुर्ण छे ।
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